गुरु

संत बालीनाथजी महाराज अपने जीवन में कई महापुरुषों के संपर्क में आये जिनमें प्रमुख रुप से सौरोंजी, उत्तरप्रदेश के गंगा गुरु एवं काशी के पंडित गंगाधरजी प्रमुख रुप से है। जिनसे इन्होंने छह शास्त्र, अठारह पुराण, वेद, उपनिषद एवं संस्कृत भाषा का गहन अध्ययन किया। गुरुओं में सर्वप्रथम बड़नगर (उज्जैन) स्थित भारतीय पंथ अखाडे के महंत स्वामी हीरानंदजी भारती से विधिवत गुरुदीक्षा ग्रहण की। इसके पश्चात्‌ नाथ सम्प्रदाय के महंत महात्मा तुंभीनाथजी महाराज से प्रभावित होकर दूसरी और अंतिम बार विधिवत गुरुदीक्षा नाथ सम्प्रदाय से लेकर आप नंदराम से शिवभारती होकर संत बालीनाथ हो गये । महात्मा तुम्भीनाथजी के निर्वाण के पश्चात्‌ उनके उत्तराधिकारी घोषित किये गये और संत बालीनाथ महंत बालीनाथ जी हो गये। संत बालीनाथजी महाराज के गुरुभाई अवश्य ही रहे होंगे लेकिन 'रमता जोगी, बहता पानी' की तरह सन्यासी एक जगह स्थिर नहीं रहते हैं इसलिये उनके बारे में जानकारी उपलब्ध नहीं है। लेकिन इनके कुछ शिष्य अवंतिका नगरी में अवश्य रहे हैं जिनमें प्रमुखतः ब्रह्‌म भारती, पांचूदासजी, जानकीदासजी, कन्हैयालालजी दयालु, रामकुमार दलौदा वाले आदि संतश्री के प्रिय शिष्यों में रहे हैं । संत बालीनाथजी महाराज दत्त अखाड े के चमत्कारी संत महंत संध्यापुरीजी महाराज के यहां आते-जाते रहे हैं।

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