निर्वाण

तुलसी संत सुअम्ब तरत फलहिं फुलहिं पर हेत ।
इतते ये पाहन हने उतते ये फल देत ॥

ऐसे संतों का पदार्पण इस पृथ्वी पर कभी-कभी ही होता है । संत बालीनाथ जी का निर्वाण ५६ वर्ष की अल्पायु में ही माघ सुदी नवमी संवत्‌ १९८२ (सन्‌ १९२५) में हुआ।

आज भी मण्डावरी में संत श्री की समाधि स्थल पर हजारों लोग जाते हैं एवं अपनी मनोकामनाओं को पूर्ण करते हैं। प्रतिवर्ष यहां मेला भी लगता है।

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