व्यक्तित्व-कृतित्व

व्यक्तित्व
संतश्री का व्यक्तित्व बचपन से ही तेजोमय, आकर्षक एवं मनोहारी रहा है। बचपन में शिक्षा का अभाव होने के बावजूद उनका शिक्षित बालक जैसा आचरण एवं व्यवहार हर किसी को अपनी ओर आकर्षित करता था और यही वजह थी कि उनके साथ सौरोंजी (उत्तरप्रदेश) से आये गंगा गुरु एवं काशी के महान पं.गंगाधरजी ने अपने पुत्र के समान आत्मीयता रखते हुए उन्हें वेद, शास्त्राों एवं संस्कृत का गहन अध्ययन करवाया। सत्यप्रियता, शील और सदाचार की प्रतिमूर्ति संत बालीनाथजी महाराज संतसेवा एवं मानव सेवा में सदैव तत्पर रहते थे। संत श्री बालीनाथजी शरीर से हष्टपुष्ट एवं गौर वर्ण के थे। भाल पर शिव तिलक सदा चमकता रहता था, जटाएं लगभग छह हाथ लंबी थी जिन्हें महात्माजी सिर पर पगड़ी की तरह लपेटे रहते थे। शरीर पर भगवा चोला धरण करते थे, कांधे पर झोला टांगे एक हाथ में चिमटा और दूसरे में सुमरणी रखते थे। बैरवा समाज में विवाह के तीन वर्ष से सात वर्ष की अवधि में सावे (गौने) का रिवाज है और इस रिवाज के पश्चात ही पति-पत्नी दाम्पत्य जीवन का निर्वाह करते हैं। चूंकि संतश्री का विवाह तेरह वर्ष की उम्र में कन्या चम्पाबाई के साथ हो गया था एवं विवाह के दो वर्ष बाद ही यह अपना घर त्यागकर जा चुके थे अतः विवाहित होने पर भी संत आजीवन ब्रह्‌मचारी रहे। संतश्री स्वभाव से जिद्‌दी, ईमानदार, सेवाभावी, ओजस्वी, कौतुहलप्रिय एवं बेहद प्रतिभाशाली थे।

कृतित्व
संत श्री बालीनाथजी का अवतरण सही अर्थों में एक समाजसुधारक के रुप में हुआ, उस समय की सामाजिक अव्यवस्थाओं, रूढियों, गलत परम्पराओं, अंधविश्वासों का संत बालीनाथजी ने घोर विरोध ही नहीं किया बल्कि आगे बढ़कर इन अव्यवस्थाओं को सुधरने का कार्य भी किया। समाज में शुद्ध, सात्विक परम्पराओं का मंगल प्रवेश करवाकर अंध्विश्वासों से समाज को मुक्त करवाया। अपने सत्संग प्रवचन के माध्यम से वे लोगों को चोरी, डकैती, शराब, मांसाहार जैसी राक्षसी प्रवृत्तियों से दूर रहने के लिये प्रेरित करते थे।

संत बालीनाथजी जनजातियों को कांसे एवं पीतल के आभूषणों की जगह सोने, चांदी के आभूषणों को पहनने की सलाह देकर उनके अंदर दबे हुए आत्म गौरव को जगाने का प्रयास करते थे। सामाजिक कुरीतियों को जड सेमिटाने का उन्होंने संकल्प लेकर कार्य किया। जिसके अंतर्गत बाल-विवाह, मृत्यु भोज, गंगा भोज जैसी अनेक कुरीतियां शामिल थी। गांव-गांव और घर-घर जाकर शिक्षा, धर्म और आत्म-सम्मान की जो मशाल आपने जलाई और जन-चेतना, जन-जाग्रति की अलख के साथ समता, बंधुता रुपी समरसता का जो प्रकाश आपने फैलाया है उसे शोषित, पीडि त एवं पिछड े समाज के साथ इंसानियत और मानव धर्म को मानने वाले हमेशा स्मरण रखेंगे।

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