संत श्री बालीनाथ परिचय

भारतीय संत परम्परा अति प्राचीन है । वैदिक काल से लेकर आज तक इस पुण्य भूमि माँ भारती की गोद में अनेक ऋषि-मुनियों, संत-महंतों ने अवतार लेकर माँ भारती का ही नहीं वरन्‌ समूचे विश्व का मस्तक गौरव से ऊँचा किया है एवं अपने नित्य-नैमेतिक कार्यों ध्यान, योग, वैराग्य एवं जप-तप-व्रत-उपवास के माध्यम से संसार के समस्त प्राणियों का कल्याण किया । इसी संत परम्परा में १९वीं सदी के उत्तरार्द्ध में सती-सूरमाओं की भूमि राजस्थान के जयपुर जिले की लालसोट तहसील में स्थित ग्राम मण्डावरी के बैरवा वंशीय बेण्डवाल गोत्र के एक साधारण कृषक मजदूर श्री किशनरामजी के घर माँ सुन्दरबाई की गोद में संवत्‌ १९२६ (सन्‌ १८६९) की फाल्गुन सुदी सप्तमी को एक संत बालक का जन्म हुआ, इस बालक का नाम नंदराम रखा गया, जो आगे चलकर महर्षि बालीनाथ के नाम से वि]यात हुआ।

मोक्ष की कामना कभी हमारे संतो का परम पुरूषार्थ रहा है, किन्तु पंचम पुरूषार्थ के रूप में 'भक्ति' की प्रतिष्ठा महत्‌ तत्व की दिशा में मनुष्य के प्रयासों को नया आयाम दे गई। फिर मध्यकाल में हिन्दी सहित तमाम भारतीय भाषाओं में भक्ति आंदोलन का प्रादुर्भाव सामाजिक जकड़न से मुक्ति की दिशा में अविस्मरणीय सिद्ध हुआ। उस दौर में कबीर, गुरूनानक, रविदास, पीपा, तुलसी,सूर जैसे अनेक रचनाकर भक्ति और सत्संग की महिमा का गान करते हुए मनुष्य में विवेक जाग्रत करने के लिए क्रियाशील रहे। यह परम्परा आज भी अबाधित है। पुनर्जागरण के दौर में जिन नए मूल्यों का विकास हुआ, उनमें संत व्यक्तित्वों की भूमिका किसी से छुपी नहीं है। १८५७ की महान क्रांति के ठीक बारह वर्ष बाद १८६९ में राजस्थान के दौसा जिले में जन्मे संत बालीनाथ इसी धारा का प्रतिनिधित्व करते हैं। वे पलायन नही, परिवर्तन के हिमायती थे। मुक्ति नहीं, भक्ति और वैराग्य नहीं, सुधार के लिए जन्मे थे।


संत बालीनाथ जी का किशोरावस्था से ही मन सत्संग में रमने लगा था, जो बाद में और प्रगाढ होता गया। उनका अधिकांश समय तीर्थ भूमियों में बीतने लगा। संत बालीनाथजी ने सत्संग करते हुए भारत की सभी दिशाओं को तो नापा ही, अपने अंतर को भी मापते रहे। वे जिस अंचल के वासी थे, वहाँ की सामाजिक रूढि यों और भेदभाव के विरूद्ध उन्होंने एक सैनिक संत की तरह संघर्ष किया। आज भी यदि पश्चिम भारत में उनकी कीर्ति की सुगंध व्याप्त है तो उसके पीछे उनकी समन्वय-दृष्टि, पर्यावरण चेतना और समाज उद्धार के प्रति गहरी प्रतिबद्धता काम कर रही है। पुनः समाज बनाने की चेष्टा की। आज जब जाति, क्षेत्र, भाषा, संप्रदाय जैसे तमाम भेद मनुष्य-मनुष्य के बीच घृणा के बीज बो रहे हैं, तब संत बालीनाथ जी के संदेश को जन-जन तक पहुँचाने की आवश्यकता बढती जा रही है।

.